۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
ज्ञान वापी मस्जिद

हौज़ा / देश आस्था की बुनयाद पर नही, बल्कि क़ानून की बनुयाद पर चलता है। देश के सर्वोच्च न्यायालय और कचैरी के फैसले आस्था और जनता के जज़्बात की बुनयाद पर नही होते बल्कि तर्क और हक़ीक़त की बुनयाद पर होते है।

तकी अब्बास रिज़वी कलकत्तवी द्वारा लिखित

हौज़ा समाचार एजेंसी | हर शाख़ पर उल्लू बैठा हैं अन्जामे गुलिस्ता क्या होगा!
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियमित पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, अर्थात 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस हालत मे थे उसी हालत मे रहेंगे। जैसे क़ानून की धज्जिया उड़ाते हुए ज्ञान वापी मस्जिद की गरीमा को तहस नहस कर के देश के माहौल को बिगाड़ा जा रहा है देश के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों रोजगार, महंगाई, शिक्षा को छोड़कर मंदिर मस्जिद की राजनीति के तहत कई दिन की महनत मशक़्क़त और सर्वो के पश्चात जब इस मस्जिद से कुछ न मिला तो वज़ूख़ाने मे मौजूद एक पुराने फव्वारे को ही शिवलिंग बनाकर हंगामा किया जा रहा है। जो देश के हर निष्पक्ष व्यक्ति के लिए चिंता का विषय है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो देश और समाज ताअस्सुब और तंग नजरी मे गिरफ्तार रहता है वो डिमोशन की गुफा में गिर जाता है। देश आस्था की बुनयाद पर नही, बल्कि क़ानून की बनुयाद पर चलता है। देश के सर्वोच्च न्यायालय और कचैरी के फैसले आस्था और जनता के जज़्बात की बुनयाद पर नही होते बल्कि तर्क और हक़ीक़त की बुनयाद पर होते है। अतः
जियो जीने दो लोगों को सभी को शाद रहने दो
ये दुनिया ख़ूबसूरत है इसे आबाद रहने दो

आज के दौर में देश की जनता महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है, समाज में हर तरफ अराजकता है और दूसरी तरफ पूर्वाग्रह और संकीर्णता की छाया बढ़ती जा रही है।

इस समय हमारे समाज और देश में नफरत से ज्यादा घृणित कोई नहीं है और नफरत की मूर्खता से ज्यादा बेवकूफ कोई नहीं है। जीवन सिसक रहा है। नफरत से नफरत करे आज पूरा संसार विशेष रूप से हमारे देश और समाज को प्रेम की जरूरत है अतः नफरतो के अजाब नही मोहब्बतो के गुलाब बाटें।

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